(i) लेखक का पहला मित्र – छापे का अक्षर
(ii) लेखक की पहली कविता – कब लौं कहौं लाठी खाय!
1) देशी 2) विलायती
1) अक्षर
2) मित्र
मित्रज्ञानार्जन का एकमेव साधन पढ़ना ही है। जब व्यक्ति तरह-तरह की ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ता है, तो उसके ज्ञान में भी वृद्धि होती है। ज्ञानी व्यक्ति अपनी समस्याओंका आसानी से हल खोज सकता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में किसी भी परिस्थिती में परेशान नहीं होते हैं। वे अपने ज्ञान के सहारे हर अच्छी-बुरी परिस्थिति का सामना कर सकते हैं। ऐसे लोग अपने ज्ञान के सहारे जीवन में सफलता प्राप्त कर सुखी जीवन जीते हैं। जो व्यक्ति ज्ञानी होता है, वह न सिर्फ स्वयं बल्कि पूरे समाज के लिए लाभकारी होता है। इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि पढ़ोगे तो बढ़ोगे।
1) काफी बड़ी है।
2) वर्ष भर पानी से भरी रहती है।
1) अनौपचारिक – औपचारिक
2) छाँव – धूप
1) रिसोर्ट
2) स्यूट
पर्यटन का तात्पर्य है नए-नए स्थानों पर जाना। पर्यटन के माध्यम से लोग नई-नई जगहों पर रहने वाले लागों के बारे में जानते हैं। वहाँ रहने वाले लोगों की सभ्यता-संस्कृति के बारे में जानकारी मिलती है। इससे नई-नई बोली-भाषा की जानकारी मिलती है। नए-नए स्थानों की भौगोलिक परिस्थितियों व वहाँ के खान-पान और रहन-सहन की जानकारी भी मिलती है। ये सभी जानकारिया इंसान के ज्ञान में वृद्धि करती हैं। इसी कारण ऐसा कहा जाता है कि पर्यटन ज्ञान वद्धि का साधन है।
(i) मेंढकों व साँपों के अपने बिलों से एकाएक बाहर निकल आने पर।
(ii) मुर्गियों की बेचैनी और अपने दरबों से दूर भागने तथा कुत्तों के भौंकने और लगातार इधर-उधर भागने के आधार पर।
भूकंप एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसे रोक पाना नामुमकिन है। इसके प्रकोप से प्रभावित क्षेत्र में जान-माल की काफी हानि होती है। इस नुकसान को कम करने व रोकने का एकमात्र तरीका भूकंप की पूर्व चेतावनी देना है। भूकंप से बचाव की पूर्व तैयारी भी की जा सकती है। भूकंप के समय प्रभावितों की अधिक-से-अधिक मदद करनी चाहिए। इस प्रकार भूकंप के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके अलावा आज मनुष्य पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने लगा है। पहाड़ों को काटना, जंगलों का सफाया करना, समुद्रों व नदियों को पाटना आदि कारणों से भी भूकंप की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। अत: पर्यावरण को सुरक्षित रखकर भी भूकंप से होने वाली हानि से बचा जा सकता है।
(1) टीन का पीप – कनस्तर
(2) कमरा – शयनकक्ष
उन्होंने टूटी अलमारियों को खोला।
घर में तलाशी लेने आए छापामार रसोईघर की खाली पीपियों और बच्चों की गुल्लक की तलाशी लेने लगे, परंतु ये सारी वस्तुएँ भी उन्हें खाली ही मिलीं। कनस्तरों व मटकों में भी ढूँढ़ने पर कुछ भी नहीं मिला।
1. जुगनू ने कहा कि मैं तुम्हारे साथ हूँ।
2. वक्त की इस धुंध में तुम रोशनी बनकर दिखो।
(1) लोगों का समूह – भीड़
(2) सीप में बनने वाला रत्न् – मोती
(1) परंतु (2) पंख
गजलकार कहता है कि तुम्हें कली से फूल बनने के इस थोड़े-से संघर्ष से नहीं घबराना चाहिए। तुम्हें तो तितली के टूटे पर की भाँति दिखना है, जो तितली के अथाह संघर्ष को दर्शाता है। गजलकार कहता है कि उसे दुनिया की इस भीड़ में एक ऐसे सच्चे चेहरे की तलाश है, जिसे देखने के बाद हर व्यक्ति में उसी की झलक दिखाई दे।
(i) वे पेड़ों पर बैठीं या आसमान में उड़ती हुई नहीं दिखती है, बल्कि बिजली या टेलीफोन के तारों पर बैठी हुई दिखती हैं।
(ii) वे बातचीत करती या घरों के अंदर यहाँ-वहाँ घोंसले बनाती नहीं दिखती हैं।
एक समय था जब पक्षियों की चहचहाट से सुबह होती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे पक्षियों की संख्या कम होने लगी है। बढ़ती जनसंख्या के कारण जंगलों व पहाड़ों का सफाया हो रहा है। इससे पक्षियों के बसेरे उजड़ने लगे हैं। उन्हें रहने के लिए सुरक्षित स्थान नहीं मिल रहा है। कीठनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग व बढ़ते प्रदूषण के चलते पक्षियों की जान खतरे में पड़ गई है। यह सिद्ध हो चुका है कि मोबाइल से निकलने वाली तरंगें पक्षियों के लिए घातक होती हैं।
वर्तमान समय में गिद्ध, गौरैया जैसी कई प्रजातियाँ विलुप्त होती जा रही हैं। विज्ञान की प्रगति व बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने की इस अंधी कोशिश में पक्षियों का जीवन खतरे में पड़ गया है।
यह मिट्टी, हुए प्रहलाद जहाँ, जो अपनी लगन के थे सच्चे।
जयमल-पत्ता अपने आगे, थे नहीं किसी को कुछ गिनते !
इतिहास हमारी भूतकाल की घटनाओंका संग्रह होता है। इतिहास में हमारे पूर्वजों द्वारा की गई अच्छी-बुरी सभी प्रकार की गतिविधियों की विस्तृत जानकारी होती है। इन जानकारियों के आधार पर हम वर्तमान व भविष्य की नीतियाँ तैयार करते हैं। इतिहास की घटनाएँ हमें समझाती हैं कि क्या हमारे हित में है और क्या हमारे लिए नुकसानदायक है। इतिहास से हम ज्ञान व प्रेरणा प्राप्त कर भविष्य में आसानी से सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इतिहास हमें सोच-समझकर आगे बढ़ने का संदेश देता है। कोई भी व्यक्ति अपने इतिहास को भुलाकर आगे नहीं बढ़ सकता है। इतिहास हमें सदैव विवेक से कार्य लेते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
कम – विशेषण
वाह! स्वादिष्ट मिठाई है।
राम के साथ अनुज भी आ रहा है।
शेखी बघारना – स्वयं अपनी प्रशंसा करना।
वाक्य: राजू हमेशा शेखी बघारता रहता है।
निछावर करना – अर्पण करना।
वाक्य: सैनिक अपने प्राण भारतमाता पर निछावर कर देते हैं।
सिरचन को बुलाओ, दुम हिलाते हुए हाजिर हो जाएगा।
ने – कर्ता कारक
में – अधिकरण कारक
मैंने कराहते हुए पूछा , “मैं कहाँ हूँ ? “
सातों तारे मंद पड़ गए हैं।
रूपा दौड़ते-दौड़ते व्याकुल हो रही थी।
हम अपने प्रियजनों, परिचितों, मित्रों को उपहार देंगे।
मिश्र वाक्य
तुम अपना ख्याल रखो।
क्या मानू इतना ही बोल सकी?
इस बार मेरी सबसे छोटी बहन पहली बार ससुराल जा रही थी।
आपने भ्रमण तो काफी किया है।
व्यवस्थापकों और पूँजी लगाने वालों को हजारों-लाखों का मिलना गलत नहीं माना जाता।
दिनांक: १ अक्टूबर, २०२०
किशोर पाटील,
स्टेशन रोड,
जालना।
kishor@xyz.com
प्रिय किशोर,
हस्तमिलन।
मैं स्वस्थ व सकुशल हूँ और आशा करता हूँ कि आप भी प्रसन्न व कुशल होंगे। दो दिन पूर्व ही आपका पत्र प्राप्त हुआ। यह जानकर गर्व से सीना फूल गया
कि आपने दोहा प्रतियोगिता में प्रथम क्रमांक प्राप्त किया है। इस उपलब्धि से आपने न केवल अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है, बल्कि अपने परिवार व
विद्यालय का भी नाम रोशन कर दिया है।
आज मुझे आपका मित्र होने पर सचमुच बहुत गर्व हो रहा है। आप इसी तरह सदैव प्रगति के पथ पर गतिमान रहो व सफलता के नित नए आयाम छुओ।
मेरी शुभकामनाएँ प्रतिपल आपके साथ हैं। चाचा जी और चाची जी को मेरा प्रणाम और साक्षी को सनेह प्यार कहना।
आपका प्रिय मित्र,
राधेय
राधेय चौगुले,
रामेशवर नगर,
वर्धा।
radhey@xyz.com
दिनांक: ४अक्टूबर, २०२०
प्रति,
माननीय व्यवस्थापक जी,
कौस्तुभ पुस्तक भंडार,
सदर बाजार,
नागपुर।
kaustubhpustak@xyz.com
विषय: प्राप्त पुस्तकों के संबंध में।
महोदय,
आपके द्वारा भेजा हुआ पुस्तकों का पार्सल मुझे आज ही प्राप्त हुआ। अप्को यह सूचित करते हुए मुझे खेद हो रहा है कि आपके द्वारा भेजी गई पुस्तकों में से कुछ पुस्तकें फटी हुई हैं और कुछ पुरानी हैं। ‘चित्रलेखा’ और ‘रामचरितमानस’ की किताबों का तो बुरा हाल है। ‘निबंध पुष्पमाला’ किताब का कवर फटा हुआ है और ‘निबंध सुषमा’ किताब के कई पन्ने गायब हैं, इसीलिए इन पुस्तकों को मैं आज ही पोस्ट-पार्सल से लौटा रहा हूँ। साथ में बिल की झेरॉक्स कॉपी भी भेज रहा हूँ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस विषय में आप स्वयं ध्यान देंगे और नई पुस्तकें भिजवाने की शीघ्र व्यवस्था करेंगे।
धन्यवाद!
भवदीय,
अशोक
अशोक मगदुम,
लक्ष्मीनगर,
नागपुर।
ashok@xyz.com
1. कौन हिंदी के माध्यम से विज्ञान जैसे गहन विषयों की शिक्षा दे रहे थे?
2. कहाँ राह निकलती है?
3. लंबे अरसे तक अंग्रेज किसे राष्ट्रीय आंदोलन का अभिनन अंग मानते रहे?
4. स्वामी जी से मिलने देश के प्रमुख राष्ट्रीय नेता कहाँ आते रहते थे?
सोलापुर। विवेकानंद विद्यालय ने बेटियों की सुरक्षा व शिक्षा के प्रति सभी को जागरूक करने के लिए २२ जनवरी, २०२० को ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान का आयोजन किया था। सुबह नौ बजे विद्यालय के सभागृह में कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता हेतु उपस्थित महिमा कन्या विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती उषा शर्मा जी का जोरदार तालियों से स्वागत किया गया। विद्यालय के प्रधानाचार्य राजपाल सिंह व अतिथि महोदया द्वारा दीप प्रज्वलन किया गया। उसके बाद विद्यार्थियों द्वारा माता सरस्वती की वंदना की गई।
प्रधानाचार्य ने अतिथि महोदय का संक्षिप्त परिचय दिया व एक पुस्तक भेंट में देकर उन्हें सम्मानित किया। उसके बाद अतिथि महोदया ने ५० प्रितभाशाली व पढ़ाई में बुद्धिमान छात्राओंको छात्रवृत्ति देने की घोषणा की तथा सभी छात्राओंको उपहार में पुस्तकें बाँटी। फिर अतिथि महोदया ने अपने वक्तव्य से सभी छात्राओंको शिक्षा प्रप्त करके देश की उन्नति में सहयोग देने के लिए प्रेरित किया। उसके बाद विद्यालय के छात्र-छात्राओंने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ इस घोषवाक्य पर आधारित एक सुंदर नाटक की प्रस्तुति की। बेटी को बोझ न समझकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना ही इस नाटक का प्रमुख संदेश था।
कार्यक्रम के अंत में विद्यालय के प्रधानाचार्य जी ने अतिथि महोदया और सभी छात्राओंक प्रित आभार प्रकट किया। अत: दोपहर एक बजे इस कार्यक्रम का सफलतापूर्वक समापन किया गया।
एकता में शक्ति होती है
शीतपुर नामक एक गाँव था। गाँव के सभी लोग हमेशा अपने-अपने काम में व्यस्त रहते थे। गाँव में एक तालाब था, जो गर्मियों में सूख गया था। तालाब सूखने की वजह से लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिल पा रहा था। सभी गाँववासी दूर-दूर जाकर पानी की खोज करते और बाल्टी, मटके आदि में पीने का पानी भरकर लाते थे। रोज-रोज उतनी दूर से पानी भरकर लाने से वे इतने थक जाते थे कि उनके लिए कोई अन्य काम करना मुश्किल हो जाता था। पानी की इस समस्या से सभी लोग बहुत परेशान थे।
गाँव के लोगों ने इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए एक सभा का अयोजन किया। उसमें एक आदमी ने सभी से कहा, ‘यदि हमारे गाँव का तालाब सूखा नहीं होता, तो हमें पानी लाने दूर तक नहीं जाना पड़ता। अतः मेरे विचार से हमें गाँव के ही तालाब की सफाई करवानी चाहिए। बरसात का मौसम आने वाला है। यदि हम उससे पहले मिलकर तालाब की सफाई कर लेते हैं, तो बरसात का पानी स्वच्छ तालाब में एकत्रित हो जाएगा, उस पानी का उपयोग हम पीने के लिए कर सकते हैं। उस आदमी की बात से सभी ने सहमत होकर तालाब की सफाई में श्रमदान करने का निर्णय लिया।
दूसरे दिन तय किए गए समय पर वह आदमी तालाब के पास सभी गाँववासियों का इंतजार कर रहा था। काफी समय तक इंतजार करने के बाद भी जब कोई नहीं आया तब वह आदमी समझ गया कि इस कार्य में गाँववाले उसकी कोई सहायता नहीं करेंगे। वह अकेले ही तालाब की सफाई के काम में जुट गया। आने-जाने वाले लोगों ने जब उस आदमी को अकेले ही तालाब की सफाई करते देखा, तो वे भी उसकी मदद के लिए तुरंत वहाँ पहुँच गए। धीरे-धीरे एक-एक करके काफी लोग तालाब की सफाई में जुट गए। उन्हें देखकर सारा गाँव इस काम के लिए प्रेरित हुआ और इस कार्य में अपना श्रमदान देने के लिए तैयार हुआ। कुछ लोगों ने तालाब से कीचड़ निकालने का कार्य किया तो कुछ लोगों ने तालाब में एकत्रित प्लास्टिक व कूड़ा-कचरा निकालने का कार्य किया। देखते-हीदेखते पूरे गाँववालों के श्रमदान से कुछ ही दिनों में तालाब पूरी तरह साफ हो गया।
कुछ दिनों बाद बरसात का मौसम आया और झमाझम बरसात हुई। गाँव का तालाब स्वच्छ पानी से लबालब भरकर बहने लगा, जिसकी वजह से गाँव में पानी की समस्या का निदान हुआ। गाँववालों की एकता के कारण ही उन्हें इस समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा मिल गया था।
सीख: मिल-जुलकर काम करने से किसी भी समस्या का हल आसानी से निकाला जा सकता है।
मेरा भारत देश
देश हमारा सबसे न्यारा, प्यारा हिंदुस्तान।
जाति अलग है, धर्म अलग है फिर भी एक है जान।
मेरा भारत देश एक सुंदर बगिया की भाँति है। इस बगिया में रंगबिरंगी फूलों की तरह अनेकों राज्य हैं। प्रत्येक राज्य की अपनी बोली, भाषा, वेशभूषा, त्योहार, रीति-रिवाज, परंपराएँ, खान-पान आदि हैं। प्रत्येक राज्य एक-दूसरे से अलग-अलग होने के बावजूद भी वहाँ में एकता की भावना है। मेरा देश एक लोकतांत्रिक देश है। जनसंख्या के मामले में मेरा देश विश्व में दूसरे स्थान पर है। मेरे देश में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध आदि धर्मों के लोग रहते हैं। इन विभिन्न धर्मों के त्योहार, जैसे- होली, दीवाली, ईद, नाताल, पारसी नवरोज, नवरात्रि आदि भी भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन इन सभी त्योहारों को पूरे देशवासी मिल-जुलकर बड़े ही प्रेम से पूरे देश में मनाते हैं। मेरे देश के लोग दक्षिण का इडली-डोसा, महाराष्ट्र की पुरणपोली और मिसल-पाव, गुजरात का ढोकला, पंजाब का सरसों का साग, बंगाल के रसगुल्ले तथा उत्तर-प्रदेश का पूरी-साग बड़े चाव से खाते हैं।
मेरा देश उत्तर में पर्वतों और नदियों से घिरा है तो दक्षिण में समुद्र तटों से; पश्चिम की ओर रेगिस्तान है तो पूरब में बंगाल की खाड़ी है। हिमालय से निकलने वाली नदियाँ मेरे देश के चरण पखारती हैं। बड़े-बड़े पहाड़ों व घने वृक्षों से आच्छादित वनों से देश में चारों तरफ हमेशा हरियाली रहती है। मेरे भारत देश को प्रकृति ने अपने आँचल में जगह दी है, इसीलिए वह भारत देश पर सतत अपना स्नेह लुटाती रहती है। मेरा देश एक कृषिप्रधान देश है। मेरे देश का किसान फसल उगाने के लिए खेतों में जी-तोड़ मेहनत करके खेतों में अनाज पैदा करता है और अपने देश के लोगों का पेट भरता है।
मेरा देश के बहादुर सैनिक दुश्मनों के दाँत खट्टे करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य कलाएँ पूरे देश में लोकप्रिय हैं, चाहे वह महाराष्ट्र की लावणी हो, पंजाब का भाँगड़ा या गुजरात का गरबा। पूरा भारत देश इन नृत्यों की तालों पर झूमता और थिरकता है। भले ही मेरे देश में कई राज्य हैं पर यहाँ सभी के लिए एक ही कानून है। किसी भी राष्ट्रीय आपदा के समय पूरा देश एकजुट होकर राहत कार्य में जुट जाता है। मेरे देश की विविधता में एकता के दर्शन होते हैं; मेरा देश प्राकृतिक संसाधनों से तृप्त है; मेरा भारत देश महान है।
पर्यावरण संतुलन
हमारे आस-पास का वातावरण ही पर्यावरण कहलाता है। हवा, पानी, पेड़-पौधे, समुद्र, नदी, तालाब, झरने, पहाड़ आदि पर्यावरण के ही अभिन्न अंग हैं। ये पर्यावरण को संतुलित बनाने में सहायता करते हैं। पेड़-पौधों हमारे पर्यावरण से कार्बनडाइ ऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं. जिससे पर्यावरण संतुलित रहता है। पेड़-पौधों का महत्त्व जानते हुए भी आज हमारे देश में कई पेड़-पौधों को काटा जा रहा है। समुद्रों को काटकर घर बनाए जा रहे हैं। कारखानों, मीलों आदि का गंदा पानी नदियों, तालाबों, समुद्रों को दूषित कर रहा है। साथ ही इनका धुआँ वायु प्रदूषण को बढ़ा रहा हैं। इन सबका बुरा परिणाम सीधे पर्यावरण पर पड़ रहा है। धीरि-धीरे पर्यावरण असंतुलित हो रहा है। पर्यावरण संतुलित न होने से ऋतुचक्र में अनियमितता आ गई है। इसका सबसे बुरा प्रभाव जीवनदायिनी वर्षा ऋतु पर हुआ है। वर्षा नियमित न होने के कारण कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि जैसी स्थिति निर्मित होती है, जिसका घातक परिणाम हमें आए दिन देखने को मिलता है।
संतुलित पर्यावरण हमें एक सुरक्षा कवच प्रदान करता है और यदि वह सुरक्षाकवच क्षतिग्रस्त होगा तो हमारे ऊपर बुरा असर पड़ेगा, इसलिए उसकी रक्षा करने का दायित्व भी हमारा ही होता है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हमें वनों की कटाई. फैक्टरियों से निकलने वाला धुआँ. प्रदूषण आदि की रोकथाम करनी चाहिए। साथ ही चारों तरफ स्वच्छता बनाए रखनी चाहिए। अतएव यह कहा जाए तो ज्यादा उपयुक्त होगा कि पर्यावरण का संतुलन बनाए रखना हमारा सामाजिक दायित्व है और प्रत्येक सामाजिक व्यक्ति के लिए यह अनिवार्य है।
इस संपूर्ण चराचर में आज जो कुछ भी है या तो पर्यावरण से लिया गया है या पर्यावरण का है। पर्यावरण और मानव परस्पर एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन यह भी सत्य है कि मानव ने सदैव पर्यावरण से कुछ न कुछ लिया ही है, उसे देने के बारे में बहुत कम अर्थात न के बराबर ही सोचा है। पर्यावरण मानव के इसी स्वार्थ के कारण कभी-कभी रुष्ट होकर मानव का अहित कर देता है। हमारा देश जहाँ आज एक ओर दिनप्रतिदिन प्रगति के कई सोपान चढ़ता जा रहा है, वहीं इस प्रगति पथ पर आगे बढ़ते हुए समस्याओंका जन्म भी हो रहा है। विज्ञान के चमत्कार से आज समाज का कोई भी व्यक्ति अछूता नहीं है। इसी विज्ञान के आविष्कारों ने आज पर्यावरण के लिए कई खतरे उत्पन्न कर दिए हैं। अत: हमारा सामाजिक दायित्व है कि हम अपने आस-पास के पर्यावरण की पूरी ईमानदारी से रक्षा करें।
पर्यावरण ने अपने हर रूप से मनुष्य को कुछ न कुछ लाभ ही दिया है। धरती पर उपलब्ध पर्यावरण के विभिन्न घटकों से ही मानव स्वयं का पोषण करता है। सूर्य की किरणें पृथ्वी पर जीवों में ऊर्जा का संचार करती हैं। बरसात अपनी अमृत रूपी बूँदों से जीवों का पोषण करती है। प्रकृति हमारे चारों ओर पर्यावरण के रूप में हमारे लिए एक सुरक्षा कवच का निर्माण करती है, लेकिन मानव विज्ञान और आधुनिकता की अंधी दौड़ में पर्यावरण का बड़ी तेजी से दोहन करता जा रहा है। पर्यावरण को किसी भी रूप में चोट पहुँचाने का अर्थ है कि मानव का अपने लिए खतरे को आमंत्रण देना। पर्यावरण का संतुलन बनाए रखना मनुष्य का परम कर्तव्य है, क्योंकि पर्यावरण के सानिध्य में ही मनुष्य के समस्त दुखों, समस्याओ, नीरसता, चिंता और निष्क्रियता का निवारण है।
पेड़ों की जब करोगे रक्षा।
तभी बनेगा जीवन अच्छा।
पुस्तक की आत्मकथा
मैं ज्ञान का भंडार हूँ। जो मेरी शरण में आता है, उसे मैं ज्ञानी बना देती हूँ। मेरे दिखाए हुआ मार्ग पर चलकर ही इंसान विकास की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जा रहा है। छोटा-बड़ा हर कोई मुझसे प्रेम करता है और मेरे सम्मान में अपना सिर झुकाता है। मैं इंसानों की साथी हूँ; उनकी हमसफर हूँ; उनकी मार्गदर्शक हूँ; मैं पुस्तक हूँ। मैं हर घर में रहती हूँ, लेकिन संगठित रूप में मेरा निवासस्थान पुस्तकालय ही है।
आदिकाल से ही मैं ज्ञान के स्रोत के रूप में जानी जाती हूँ। लोग मेरा अध्ययन कर स्वयं का ज्ञानवर्धन करते हैं। हर व्यक्ति के जीवन में मेरा एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। खासकर विद्यार्थियों व लेखकों के जीवन में मेरा प्रमुख स्थान है। वे किसी भी क्षण मुझे स्वयं से अलग नहीं करना चाहते हैं। एक गुरु की भाँति मैं हर पग पर उनका मार्गदर्शन करती रहती हूँ। ऐसा करके मुझे बहुत संतोष प्राप्त होता है, क्योंकि यही मेरे जीवन का उद्देश्य भी है।
आज मेरा जो रूप आपको दिखाई देता है, शुरुआती दिनों में ऐसा नहीं था। पहले कागज का आविष्कार नहीं हुआ था। अतः भोजपत्रों, बाँस की पतली पट्टियों आदि का प्रयोग किया जाता था। धीरे-धीरे विज्ञान की प्रगति ने मेरा रूप बदल दिया। आज पेड़ों से कागज का निर्माण किया जाता है और इसी से मुझे यह नया सुंदर रूप प्राप्त हुआ है। कविता, कहानी, नाटक, विज्ञान, इतिहास, भूगोल इत्यादि का सारा ज्ञान मुझमें ही समाहित है।
मेरा निर्माण बहुत परिश्रम से होता है। पहले पेड़ों की गुदा से कागज का निर्माण किया जाता है। इसके बाद कोई ज्ञानी व्यक्ति मेरे पन्नों पर ज्ञान की बातें अंकित करता है। बड़ी-बड़ी मशीनों के सहारे मेरी छापाई की जाती है। इससे मेरी जैसी अनेक प्रतियाँ बनकर तैयार हो जाती हैं। इसके बाद मैं दुकानों व पुस्तकालयों में पहुँचती हूँ, जहाँ से लोग अपनी-अपनी रुचि और जरूरत के अनुसार मेरा प्रयोग करते हैं।
मैंने देखा है कि कुछ बच्चे व पाठक मुझे बहुत सँभालकर रखते हैं, तो कुछ मेरे पन्नों को फाड़कर व गंदा करके मेरा रूप खराब कर देते हैं। ऐसे लापरवाह पाठकों पर मुझे बहुत गुस्सा आता है। मेरी उनसे यही गुजारिश है कि वे अपनी तरह मुझे भी साफ-सुथरी व सुरक्षित रखें, जिससे मैं और अधिक लोगों के काम आ सकूँ ।
जबसे मेरा जन्म हुआ है, मानवजाति ने मुझे सिर आँखों पर बिठाया है। लोग मुझे सरस्वती माँ का रूप समझते हैं। मेरी पूजा-अर्चना करते हैं। मुझे यह सम्मान प्राप्त कर स्वयं पर बहुत गर्व होता है। आधुनिक युग में मेरा एक नया रूप जन्म ले रहा है। लोग अब मुझे अपनी अलमारियों में बंद करने लगे हैं और मेरे बदले कंप्यूटर, मोबाइल आदि पर उपलब्ध मेरे एक नए रूप का मोह लोगों में तेजी से बढ़ने लगा है। यह परिवर्तन मेरे लिए बहुत सुखद नहीं है, क्योंकि मुझे अपना वर्तमान रूप बहुत पसंद है। फिर भी मैं परिवर्तन का सम्मान करती हूँ। मेरा जन्म मानवसभ्यता को ज्ञान-विज्ञान की बुलंदियों तक पहुँचाने के लिए हुआ है और मैं ऐसा करके स्वयं को धन्य समझती हूँ। बस यही है मेरी छोटी-सी आत्मकथा।