पाठ ३ : पंद्रह अगस्त

आकलन

१. (अ) संकल्पना स्पष्ट कीजिए -

(१) नये स्वर्ग का प्रथम चरण
उत्तर: अब भारतवासी अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्र हो चुके हैं और स्वतंत्रता स्वर्ग से कम नहीं होती है। अत: स्वर्ग में हमारा यह पहला चरण है।
(२) विषम श्रृंखलाए
उत्तर: अंग्रेजों के शासनकाल में सभी भारतीय परतंत्रता का जीवन बिता रहे थे। उस समय समाज में ऊँच-नीच और अमीरी-गरीबी का भी भेदभाव था। ये परिस्थितियाँ कष्टकारी जंजीरों में जकड़े रहने जैसा ही था।
(३) युग बंदिनी हवाएँ
उत्तर: अंग्रेजों के शासनकाल में हर कोई गुलामी का जीवन बिता रहा था। ऐसा लगता था कि जैसे उस समय की हवाएँ भी उनकी गुलाम बन गई थी।

(आ) लिखिए-

काव्य सौंदर्य

२. आशय लिखिए:

(अ) “ ऊँची हुई मशाल हमारी. . .हमारा घर है।”
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि गिरिजाकुमार माथुर जी द्वारा रचित “पंद्रह अगस्त” कविता से ली गई हैं। इस कविता के माध्यम से कवि भविष्य में आने वाली परेशानियों के संदर्भ में देशवासियों को संबोधित करते है। कवि कहता है कि हमें आजादी तो मिल गई है लेकिन आगे का रास्ता, अर्थात हमारा आने वाला समय कठिनाईयों से भरा हुआ है । शत्रु आज हमारे घर से निकल गया है, लेकिन उसकी छाया अर्थात उसके लौट आने का खतरा हमेशा बना रहेगा। इतने समय तक लगातार शोषित किए जाने से हमारा समाज अभावग्रस्त होकर मृतक के समान हो गया है। आज हम बहुत कमजोर है। कवि के अनुसार हमारे पास जो कुछ भी था, उसे लूट लिया गया है। हमें एक बार फिर नए सिरे से अपने समाज और देश का निर्माण करना है।

(आ) “युग बंदिनी हवाएँ … टूट रहीं प्रतिमाएँ।”
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि गिरिजाकुमार माथुर जी द्वारा रचित “पंद्रह अगस्त” कविता से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने देश को आजादी मिलने के बाद हो रहे बदलाव को दर्शाया है। कवि कहता है कि सदियों से हम एक निर्धारित सीमाओं में बंधे हुए थे।  सदियों से हमारे देशवासियों की दबी और कुचली इच्छाए संतुस्ट होने के लिए बेचैन है कवि कहते है आजादी मिलने के पहले हम जिन सीमाओं में बंधे हुए थे, अब वे सीमाएं हमारे देशवासियों के लिए एक प्रश्नचिन्ह बन गई है और वो लोग उन सीमाओं को तोड़ देना चाहते है। विदेशी शासकों का राज्य खत्म होने के साथ ही उनकी प्रतिमाएँ अर्थात उनके चिहनों को भी देश से उखाड़ फेंका जा रहा है। उनके स्थान पर हमारे स्वतंत्र देश के नए प्रतीक निर्मित हो रहे हैं।

अभिव्यक्ति

३. (अ) ‘देश की रक्षा- मेरा कर्तव्य’, इसपर अपना मत स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जिस प्रकार माता अपने बालक को पाल-पोसकर बड़ा करती है, उसी प्रकार धरती माता भी अपने बच्चों पर अपना सबकुछ न्यौछावर कर देती है। देश की मिट्टी में ही खेल-कूदकर हम बड़े होते हैं। उसी से हमें भोजन, कपड़ा, मकान और सभी जीवनोपयोगी चीजें मिलती हैं। देश की धरती ही हमारी पहचान होती है। देश की सभ्यता और संस्कृति हमें और हम उसे अपनाते हैं। देश हमें एक सभ्य समाज देता है; हमें सुरक्षा प्रदान करता है और हमारी हर जरूरत की पूर्ति कर, हमें अपने पैरों पर खड़ा होने का अवसर प्रदान करता है। अत: हम जिस देश में रहते हैं, उसकी रक्षा करना हमारा नैतिक कर्तव्य होता है।

(आ) ‘देश के विकास में युवकों का योगदान’, इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर: किसी भी देश की उन्‍नति या अवनति उस देश के नागरिकों पर निर्भर होती है। यदि देश के नागरिक शिक्षित एवं जिम्मेदार हैं, तो वे आने वाले समय में देश के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं। खासकर युवा पीढ़ी देश के लिए बहुत मायने रखती है, क्योंकि आज का युवा ही कल का भविष्य है। यदि वर्तमान समय में देश के युवाओं को अच्छी शिक्षा दी जाए, उनका सही मार्गदर्शन किया जाए और उन्हें उनकी जिम्मेदारियों से अवगत कराया जाए, तो आगे चलकर देश को उनसे बहुत लाभ होगा। यही कारण है कि किसी भी देश का सबसे बड़ा निवेश उसकी युवा पीढ़ी को कहा जाता है। अत: देश के विकास के लिए युवाओं का सर्वागीण विकास आवश्यक है।

रसास्वादन

४. स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ समझते हुए प्रस्तुत गीत का रसास्वादन कीजिए
उत्तर: गिरिजाकुमार माथुर जी द्वारा लिखित पंद्रह अगस्त कविता ‘धूप के धान! नामक काव्य-संग्रह से ली गई है। कवि ने यहाँ स्पष्ट किया है कि जब तक शोषित, पीड़ित और लगभग मृत हो चुके समाज का पुनरुत्थान नहीं होगा तब तक सही मायने में भारत देश आजाद नहीं कहलाएगा। यहाँ कवि देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात पहरेदारों के माध्यम से सभी देशवासियों को संबोधित करते हुए, उन्हें हर क्षण सतर्क रहने के लिए कह रहा है। आजादी के बाद वर्तमान समय में हमारा देश कई समस्याओं से जूझ रहा है। भारत से दुख की काली छाया अभी पूरी तरह से हटी नहीं है। हमें शोषित, पाड़ित और मृतक के समान हो चुके समाज के पुनरुत्थान हेतु कड़ा संघर्ष करना होगा। इन लक्ष्यों की पूर्ति के बाद ही हमारा देश सही मायने में स्वतंत्र व खुशहाल बन पाएगा। यह सब तभी संभव हो सकेगा जब सभी भारतवासी एक होकर देश के लिए विकास के लिए उसी तरह प्रयास करेंगे, जैसे उन्होंने स्वतंत्रता के आंदोलन को आगे बढ़ाया था। आज हमें एकता, बंधुता और देशभक्ति के मूल्यों को अपनाते हुए आगे बढ़ना चाहिए। यह कविता गीत विधा में लिखी गई है। कविता में लयात्मक व सरल शब्दों का प्रयोग किया गया है जिसके कारण यह कविता गेय बन गई है। कविता देशवासियों के मन में एक नया उत्साह व प्रेरणा पैदा करती है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

५. जानकारी दीजिए:

(अ) गिरिजाकुमार माथुर जी के काव्यसंग्रह-
उत्तर: नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, जो बँध नहीं सका, साक्षी रहे वर्तमान, मैं वक्‍त के हूँ सामने आदि।
(आ) “तार सप्तक’ के दो कवियों के नाम-
उत्तर: अज्ञेय और गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’।