पाठ ५ : मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला

आकलन

१. लिखिए :

(अ) यशोदा अपने पुत्र को शांत करते हुए कहती है-
उत्तर:
(१) चंदा तुम्हें मेरा लाल बुला रहा है, वह तुम्हें अपने साथ मधु, मेवा, पकवान और मिठाई खिलाएगा।
(२.) चंदा तुम्हें मेरा पुत्र हाथ पर लेकर खेलेगा। वह एक क्षण के लिए भी तुम्हें धरती पर नहीं बिठाएगा।

(आ) निम्नलिखित शब्दों से संबंधित पद में समाहित एक-एक पंक्ति लिखिए – 
उत्तर:
(१) फल     :
खारिक दाख खोपरा खीरा। केरा आम ऊख रस सीरा।

(२) व्यंजन : घेवर फेनी और सुहारी। खोवा सहित खाहु बलिहारी।
(३) पान     : तब तमोल रचि तुमहिं खवावौं। सूरदास पनवारौ पावौं।

काव्य सौंदर्य

२. (अ) निम्नलिखित पंक्तियों का भाव सौंदर्य स्पष्ट कीजिए – 
“जलपुट आनि धरनि पर राख्यौ।
गहि आन्यौ वह चंद दिखावै।।”
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ संत कवि सूरदास जी द्वारा रचित ‘मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला’ कविता से ली गई हैं। यहाँ संत जी ने मातृ प्रेम का बहुत ही मनोहारी वर्णन किया है। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से संत सूरदास जी ने माता यशोदा की चतुराई से बालक कृष्ण की हठ पूर्ण करने की कला को दर्शाया है। चंद्रमा को माँगने पर यशोदा ने पानी से भरे पात्र को धरती पर लाकर रख दिया। उसमें जब चंद्रमा का प्रतिबिंब दिखाई देने लगा तब उन्होंने उसे कृष्ण को दिखाते हुए कहा, “मेरे लाल! यह देखो मैं तुम्हारे लिए चंद्रमा को पकड़कर ले आई।” यह पंक्तियाँ माता की ममतामयी छवि का चित्रण कर रही हैं।

(आ) निम्नलिखित पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए –
“रचि पिराक, लड्डू, दधि आनौ।
तुमकौं भावत पुरी सँधानौं।।”
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ संत कवि सूरदास जी द्वारा रचित ‘मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला’ कविता से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से संत सूरदास जी ने माता यशोदा द्वारा बालक कृष्ण को भोजन कराने के लिए किए जा रहे तरह-तरह के प्रयासों को बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया है। माता यशोदा कहती हैं,“मैं गुझिया-लड्डू बनाकर दही के साथ लाई हूँ। तुम्हें पूड़ी के साथ अचार बहुत प्रिय है। मैं वह भी लाई हूँ।” यहाँ माता की ममतामयी छवि का चित्रण किया गया है।

अभिव्यक्ति

३. ‘माँ ममता का सागर होती है’, इस उक्ति में निहित विचार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: माता अपने पुत्र या पुत्री पर आजीवन अपनी ममता न्यौछावर करती है। संसार के अन्य सभी संबंधों में स्वार्थ निहित होता है, किंतु माँ निःस्वार्थ भाव से अपने जिगर के टुकड़े पर प्रेम बरसाती है। स्वयं की इच्छाओं के बारे में न सोचकर वह अपना सब कुछ बलिदान कर देने को सदेव तत्पर रहती है। अपने लाल के शरीर पर लगने वाली हर एक चोट की पीड़ा को वह अपने हृदय में अनुभव करती है। हमेशा अपने अंश की सुरक्षा के पक्ष में खड़ी रहकर दुनिया की विपक्षी बनने वाली माँ ही होती है। माँ का स्नेह संसार में अनोखा है। स्वयं भूखी रहकर भी बच्चे को भरपेट खिलाने वाली; स्वयं अशिक्षित रहकर भी बच्चे को उच्च शिक्षित बनाने वाली; स्वयं जर्जर रहकर भी बच्चे को चमकाने वाली; स्वयं का वर्तमान जलाकर बच्चे का भविष्य प्रकाशमान बनाने वाली माँ ही होती है। यह वात्सल्य संसार के किसी और संबंध में नहीं हो सकता है। माँ ही प्रथम गुरु और भगवान है। उसके बिना भरा-पूरा जीवन भी
सुनसान है।

रसास्वादन

४. बाल हठ और वात्सल्य के आधार पर सूर के पदों का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर: संत सूरदास जी दवारा लिखित “बाल लीला’ कविता ‘सूरसागर’ नामक रचना का एक छोटा-सा अंश है। कवि ने यहाँ बालक कृष्ण के बाल हठ को बहुत ही सुंदर ढंग से दर्शाया है। इसके साथ ही यहाँ बतलाया गया है कि एक माता का संसार उसका बालक ही होता है। वह उसकी खुशियों में ही अपनी खुशी ढूँढ़ लेती है। माता का प्रेम इस संसार में अतुलनीय व निःस्वार्थ होता है। यहाँ कविता के पहले भाग में कवि ने बालक कृष्ण की जिद को पूरा करती माता यशोदा की कोशिश का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है। बालक कृष्ण चंद्रमा को खेलने के लिए माँगते हैं। माता यशोदा अपने पुत्र की इस इच्छा को पूरी करने के लिए तरह-तरह के उपाय करती हैं। पहले वे चंद्रमा को लालच देकर बुलाने की कोशिश करती हैं और फिर पानी के कटोरे में चाँद की छवि दिखाकर उन्हें बहला लेती हैं। कविता के दूसरे भाग में कलेवा करने के लिए किस भाँति माता यशोदा अपने बालक कृष्ण को मनाती व दुलारती हैं, उसका मनमोहक चित्रण किया गया है। यहाँ पर माता यशोदा कृष्ण को लालच देती हैं और अंततः उन्हें कलेवा करने के लिए मना लेती हैं। यह पद शैली में लिखी गई कविता है। इसमें कुल दो पदों को शामिल किया गया है। दोनों पदों में सुंदर व सहज देशज शब्दों का प्रयोग किया गया है। इससे कविता की सुंदरता व प्रभाव बहुत बढ़ जाता है। यहाँ लयात्मक शब्दों का प्रयोग कविता की सुंदरता को और बढ़ा देता है।

साहित्य संबंधी सामान्य ज्ञान

जानकारी दीजिए :

(अ) संत सूरदास के प्रमुख ग्रंथ-
उत्तर: १. सूरसागर २. सूरसारावली ३. साहित्य-लहरी ४. नल-दमयंती ५. ब्याहलो
(आ) संत सूरदास की रचनाओं के प्रमुख विषय-
उत्तर: श्रीकृष्ण की लीलाएँ, राधा-कृष्ण विवाह, श्रीकृष्ण की भक्ति, रामकथा आदि।