(अ) ‘स्वागत हैं’ काव्य में दी गई सलाह।
उत्तर : युग-युगांतरों के बाद आज हम मिले हैं – हमारा इतिहास, कष्ट सब भूलकर हमें इकट्ठा होना है – नैहर आकर अपनों को मिलना है, शेष जिंदगी सुखपूर्वक बितानी है।
(आ) प्रथम स्वागत करते हुए दिलाया विश्वास
उत्तर : सब बिखरे थे आज मिलन होगा। इस धरती को स्वर्ग बना देंगे।
(इ) मारीच’ से बना शब्द
उत्तर : ‘मारीच’ से मॉरिशस यह शब्द बना।
(अ) “यह तो तब था, घास ही पत्थर
पत्थर में प्राण हमने डाले ।।”
उपर्युक्त पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : अंग्रेजों ने सभी बांधवों को गिरमिटिया बनाकर गुलामी की जंजिरों में जकड़कर भिन्न-भिन्न देशों में बिखेर दिया। मॉरिशस की भूमि पर ये सभी बांधव अब इकट्ठा हुए। उस समय कोमलता भी पत्थर के समान कठोर बन गई थी। इस देश को घूमकर देखने पर पता चलेगा कि आज हमने पत्थर में प्राण फूंके हैं। सभी बांधवों को इकट्ठा किया है।
(आ) ‘स्वागत है’ कविता में ‘डर’ का भाव व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ ढूँढ़कर अर्थ लिखिए।
उत्तर : कविता में डर का भाव व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं पनिया-जहाज पर कौन चढ़ेगा अब भैया, बडा डर लग रहा है उससे तो अर्थ : हमारे सब बांधवों के मन में पानी में चलने वाले जहाज को लेकर डर-सा समा गया है। भय लग रहा है कि कहीं वह काला, भयंकर इतिहास फिर से दोहराया न जाए। फिर एक बार अंग्रेज सभी बांधवों को गुलाम बनाकर अलग-अलग देशों में भेज न दें।
(अ) ‘विश्वबंधुत्व आज के समय की आवश्यकता’, इसपर अपने विचार लिखिए।
उत्तर : विश्वबंधुत्व आज के समय की माँग है क्योंकि आज वैश्वीकरण का युग है। विश्व की बढ़ती जनसंख्या ने उत्पादों की त्वरित प्राप्ति हेतु परस्पर एक दूसरे के साथ सह अस्तित्व को बढ़ावा दिया है। किसी भी देश की छोटी-बड़ी गतिविधि का प्रभाव आज संसार के सभी देशों पर किसी न किसी रूप में अवश्य पड़ रहा है। फलत: समस्त देश अब यह अनुभव करने लगे हैं कि पारस्परिक सहयोग, स्नेह, सद्भाव, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और भाईचारे के बिना उनका काम नहीं चलेगा। विश्वबंधुत्व की अवधारणा (concept) भारतीय मनीषियों (wise) के सूत्र ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ पर आधारित है जो शाश्वत (eternal) तो है ही, व्यापक एवं उदार नैतिक-मानवीय मूल्यों पर आधारित भी है। संसाधनों की बढ़ती माँग और उसकी पूर्ति के मनुष्य-मात्र के अथक प्रयत्नों ने दूरियों को कम किया है। फलस्वरूप विश्वबंधुत्व का विशाल दृष्टिकोण वर्तमान स्थितियों का महत्त्वपूर्ण परिचायक बना है।
(आ) मातृभूमि की महत्ता को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर : जिस व्यक्ति का जन्म जहाँ पर होता है उसे वह भूमि बहुत प्यारी होती है। वह उस भूमि की गोद में बड़ा होता है और वह उसकी माँ के समान होती है और उसे उसकी मातृभूमि कहा जाता है। मेरी मातृभूमि भारत है और मुझे इसे बहुत ही ज्यादा प्यार है। यह कला, संस्कृति और साहित्य से भरपूर है। इसे ऋषि-मुनियों की भूमि भी कहा जाता है और यहाँ पर बहुत से महापुरुषों का भी जन्म हुआ है। मेरी मातृभूमि चारों तरफ से प्रकृति से घिरी हुई है। इसमें कहीं पर घने जंगल हैं तो कहीं पर पहाड़ और कहीं पर नदियाँ हैं। इसकी राष्ट्रभाषा हिंदी है। यहाँ पर सभी त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। मेरी मातृभूमि विविधता में एकता का प्रतीक है। यहाँ पर सभी धर्मों के लोग रहते हैं और प्रत्येक राज्य की अपनी विशेषता है। इसके कण-कण में माँ की ममता छिपी है और कृषिप्रधान देश होने के कारण यहाँ पर हर समय खेतों में फसलें लहलहाती नजर आती है। मेरी मातृभूमि बहुत ही सुंदर है और इसकी सुंदरता को देखने हर साल बहुत से पर्यटक विदेशों से भी आते हैं।
४. गिरमिटियों की भावना तथा कवि की संवेदना को समझते हुए कविता का रसास्वादन कीजिए।
उत्तर :
(i) शीर्षक : स्वागत है
(ii) रचनाकार : शाम दानीश्वर
(iii) केंद्रीय कल्पना : प्रस्तुत कविता में कवि ने अंग्रेजों के गुलाम बनकर झेले गए अपार कष्टों का हृदयविदारक वर्णन किया है। इतिहास की उस लंबी कहानी को जीना मतलब कीचड़ की दलदल में फँस जाना था। उस समय कोमलता भी पत्थर के समान कठोर बन गई थी। इस देश को घूमकर देखने पर पता चलेगा कि आज तक बिछड़े सारे लहूलुहान बंधु अब मॉरिशस में इकट्ठे हो रहे हैं। अब उस कीचड़ में कमल के फूल उगने लगे हैं। हमने पत्थर में प्राण फूंके हैं। इन सब बंधु-बाँधवो का मॉरिशस में हृदय से स्वागत करते हैं।
(iv) रस-अलंकार : यह कविता प्रवासी साहित्य है। विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा रचा साहित्य इस श्रेणी में आता है।
शाम दानीश्वर जी मॉरिशस में बसे हिंदी कवि हैं। स्वागत है कविता में कहीं पर भयानक रस “कहीं पुन: दोहरा न दे इतिहास हमारा, इस-उस धरती पर बिखर न जाएँ” तो कहीं पर वीर रस – ‘तो स्वर्ग इसे तुम बना जाओ, स्वागत – स्वागत – स्वागत है!’ की निष्पत्ति हुई है। प्रतीक विधान : प्रस्तुत कविता में कवि प्रवासी भारतीयों को अपनी विगत दुखद स्मृतियाँ भुलाकर मॉरिशस आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
(v) कल्पना : मॉरिशस की भूमि के लिए नैहर की कल्पना की है क्योंकि इस भूमि पर बिखरे परिजनों का मिलाप होगा। विविध देशों में विखरे हुए बंधुओं का मॉरिशस की भूमि पर स्वागत है।
(vi) पसंद की पंक्तियाँ तथा प्रभाव :
‘पर दासता पंक में जा गिरे थे
कितने युग लगे पंकज बनने में,
‘मारीच’ से मॉरिशस बनने में,
देखो इस पावन भूमि पर
बन बांधवों का सफल प्रणयन।’
इन पंक्तियों में कवि कह रहे हैं हम अग्रेजों के गुलाम बनकर कीचड़ की दल-दल में जा गिरे थे। कई युग लग गए कीचड़ में कमल खिलने के लिए। कई दिशाओं से इकट्ठा कर हमारे बांधवों को मॉरिशस की इस पवित्र भूमि पर सफलतापूर्वक ले जाया गया है। गिरमिटियों के जीवन में आए सकारात्मक पहलुओं को उजागर करने वाली ये पंक्तियाँ मुझे पसंद हैं।
(vii) कविता पसंद आने के कारण : मॉरिशस हिंद महासागर का स्वर्ग है, यह कल्पना गिरमिटियों को सत्य में तबदील करनी है। कवि का गिरमिटियों की सृजनात्मक प्रतिभा पर विश्वास इस कविता में व्यक्त हुआ है।
इसीलिए मुझे यह कविता पसंद है।
५. जानकारी दीजिए:
(अ) प्रवासी साहित्य की विशेषता – ………………………………………….
उत्तर :
- स्थानिक संस्कृति-संस्कारों की झलक
- स्थानिक रीति-रिवाजों की झलक
- स्थानिय भाषा-मुहावरों एवं प्रतीकों का प्रयोग
- स्थानिय परिवेश एवं वातावरण का चित्रण
- देश-विदेश के जीवन मूल्यों का चित्रण
(आ) अन्य प्रवासी साहित्यकारों के नाम – ………………………………………….
उत्तर :
- डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी (लंदन)
- उषा वर्मा (यॉर्क, लंदन)
- कृष्ण बिहारी (अबुधाबी)